मेरे ख़्वाब मुझे इतना बता ...
क्यों है आजकल तेरा मन खोया खोया ?
तेरे कूछ छन्द ही तो मेरे पलकों के सिरहाने ,
कवारे सिलवटों के दर सजाते है।
मुझसे ना तू अपनी मोतियों की नगरी छुपा ,
देदे मुझको जरा एक आना दो आना ।
मेरी जो रुबाईया है, वो भी तो अमानत हैं तेरी
जरा सोच मेहर बनकर तू क्या पायेगी ।
मेरे नींद के कोरी कटोरियों में ,
आज बरस जा तु निस्ब्द बनकर ।
मेरे ख्वाब मुझेइतना बता ...
हैं अभी ख्वाबों के दीवारों दर कवारे ....
ना कर तू इस्तकबाल दरख्त ऐ आरजू का ,
रहने दे मेरे ख्वाबों को थोरा और बेताहसा ..
इन आँखों के रँगरेज से बच के कहा जायेगी ,
बर्फीली घाटियों में भी ,मेरी हथेलियों में तू सज जायेगी ।
आ अब वहां चले ...जहाँ हक़ीकत की जमीं पे ......तू सरसों और मै कावेरी बन जायुगी ....।।