हमारे रिश्तों के आँगन में जाने कितने रिश्तें आतें और जातें हैं ,मगर कुछ ही दिल के इतने करीब हो जातें हैं की उनकी खातिर हम कुछ भी कर गुजरतें हैं। इन्ही रिश्तों की फुलवारी से कुछ छानकर कविता बनाने की कोशिश है - शब्दों के दिल से ...... तो शब्दों की नगरी, के बासिन्दों के हवाले करती हु ये कविता की कोशिश ...
उसे प्यार से भी बढकर प्यार किया जायें !
जो दिल की गहराईयों से हो कर रूह तक शामिल हो ,
भूल कर भी उसे -सवालों से न तराजा जायें ,
उसकी सिरकत से ही रग-रग में वाहिनी हैं ,
वो हैं तो जिन्दगी का हर पल खुशमियाना हैं ,
अब ऐसे अजीज रिश्तों की जमीं पे
दिल की मधुशाला बनाई जायें ,
न हो दामन में शर्त की रंगत,
समर्पण रंगरेज से रंगी हो चाहत की चुन्नी ,
तरफाएं दो राह नही ये ,
पग -पग जड़ के राह बना,
हैं ये वो मंजिल,
और
कच्ची नवेली कियारियों में ,
लगन बनजाता बरगद की छाँव हैं
ऐसे दिलें जुगुनू पे ,
तमाम रौशिनी छानकर अम्बर से उतारी जायें ।।
"क्यों न कुछ ऐसा किया जायें "
जज्बातों से सज जाती है जब रति की डोली ,
शिथिल हो जाता है तब तांडव की भी बोली,
हैं बड़ी अनोखी कारीगिरी ,
बन जाती हैं गोपीयां भी मुह बोली सखी
ऐसे छलियें पे ,
मन की यमुना बहाई जायें
"क्यों न कुछ ऐसा किया जायें "
प्यार वाले दिल में मथ -मथ कर हैं भाव उभरता,
इक इक पल में सदियों का हैं रैन बसरता,
न खोने का अहसास न कुछ पाने की अभिलाषा ,
जाने कैसे- चाहतों की मिटटी ,
से सिर्फ अर्पण है उपजता !
इस सिर्जन सी धरती को
प्रेम मदिरा की नमी से सिंची जायें
"क्यों न कुछ ऐसा किया जायें "
सुनकर आवाज़ ही उसकी ,
ग़मों की आंधी ,सुकुनियत की हवा है बन जाती ,
बस चाहना ही किसी को , खुद को करता हैं हांफिज
" फिर"
अपने आप में ही पूरी होकर जिवन बन जाता हैं ताबिज ,
ऐसे कल्मायें इश्क़ पे
दिल से अजान लगाई जायें
"क्यों न कुछ ऐसा किया जायें "
शब्द तराईयों के परिंदें,
अब और हिलोद न मुझेसे करों ,,
प्रेम भाव की गजगामिनी को ,
आज बस यही विराम लगाई जायें ,
कवित्री का हैं अब अशर्वादी कथन ,
प्यार ,प्रेम संबंध से
चमकता रहें हर दिल
पुनम चाँद की हो जैसे मंदिर
तो ऐसे प्यार में
क्यों न पूरी जिंदगी इंतजार में बिताई जायें !!
"क्यों न कुछ ऐसा किया जायें "
******* *********
क्यों न कुछ ऐसा किया जायें ,
जिसे चाहें हम दिल से ,उसे प्यार से भी बढकर प्यार किया जायें !
जो दिल की गहराईयों से हो कर रूह तक शामिल हो ,
भूल कर भी उसे -सवालों से न तराजा जायें ,
उसकी सिरकत से ही रग-रग में वाहिनी हैं ,
वो हैं तो जिन्दगी का हर पल खुशमियाना हैं ,
अब ऐसे अजीज रिश्तों की जमीं पे
दिल की मधुशाला बनाई जायें ,
"क्यों न कुछ ऐसा किया जायें "
न हो दामन में शर्त की रंगत,
समर्पण रंगरेज से रंगी हो चाहत की चुन्नी ,
तरफाएं दो राह नही ये ,
पग -पग जड़ के राह बना,
हैं ये वो मंजिल,
और
कच्ची नवेली कियारियों में ,
लगन बनजाता बरगद की छाँव हैं
ऐसे दिलें जुगुनू पे ,
तमाम रौशिनी छानकर अम्बर से उतारी जायें ।।
"क्यों न कुछ ऐसा किया जायें "
जज्बातों से सज जाती है जब रति की डोली ,
शिथिल हो जाता है तब तांडव की भी बोली,
हैं बड़ी अनोखी कारीगिरी ,
बन जाती हैं गोपीयां भी मुह बोली सखी
ऐसे छलियें पे ,
मन की यमुना बहाई जायें
"क्यों न कुछ ऐसा किया जायें "
प्यार वाले दिल में मथ -मथ कर हैं भाव उभरता,
इक इक पल में सदियों का हैं रैन बसरता,
न खोने का अहसास न कुछ पाने की अभिलाषा ,
जाने कैसे- चाहतों की मिटटी ,
से सिर्फ अर्पण है उपजता !
इस सिर्जन सी धरती को
प्रेम मदिरा की नमी से सिंची जायें
"क्यों न कुछ ऐसा किया जायें "
सुनकर आवाज़ ही उसकी ,
ग़मों की आंधी ,सुकुनियत की हवा है बन जाती ,
बस चाहना ही किसी को , खुद को करता हैं हांफिज
" फिर"
अपने आप में ही पूरी होकर जिवन बन जाता हैं ताबिज ,
ऐसे कल्मायें इश्क़ पे
दिल से अजान लगाई जायें
"क्यों न कुछ ऐसा किया जायें "
शब्द तराईयों के परिंदें,
अब और हिलोद न मुझेसे करों ,,
प्रेम भाव की गजगामिनी को ,
आज बस यही विराम लगाई जायें ,
कवित्री का हैं अब अशर्वादी कथन ,
प्यार ,प्रेम संबंध से
चमकता रहें हर दिल
पुनम चाँद की हो जैसे मंदिर
तो ऐसे प्यार में
क्यों न पूरी जिंदगी इंतजार में बिताई जायें !!
"क्यों न कुछ ऐसा किया जायें "
******* *********