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Saturday, June 15, 2013

मेरी ख्वाइशो की जंगल

मेरी ख्वाइशो की जंगल

       तूफान  आने से फह्लें 
           मुझको थोडा सा ठहर  जाने दो 
   उड़ भी जाये छत दिल के घरोंदें से ,
   कुछ तो  जीने के सामान सजों लेने दों 
            वो क्या खाक हैं हमारा ,
                जिसे बांध कर ,
       हर बार रिश्तें के  मिनार में रचा जाएँ ,
      मेरी ख्वाइशो की जंगल ,
      तूफान  आने से फह्लें 
      मुझको थोडा सा ठहर  जाने दो
यु तो लहरें सपनो की ,
सांत ही रोया करती हैं 
दोषारोपण वाली वाटिका में 
फिर अपनी ही चुनड से ,
पोछ कर बूंदें ,
लौट जाती हैं ,
उमिंद महल में ,
किरणों के कोलाहल से डर  कर 
मिलती हैं अक्सर खिलखिलाती हँसी ,
बुजुर्ग नीम की टहनियों में ,
बहार  सकूँ अपनी गली से ,
हरिली निमोलियों का पतझड़ 
इतनी तो मुझको संभल जाने दे !
 मेरी ख्वाइशो की जंगल ,
  तूफान  आने से फह्लें 
 मुझको थोडा सा ठहर  जाने दो!!



हर तरफ  मिलेगी छाव ,
 ये  पालना तो बस मिलती थी ,
बाबुल तेरे बचपन वाली आँगन में ,
अब तो कब आ जाएँ ,
पाँव  तलें भूखें नसीबों के परिन्दें 
बिना तार और संदेस के ,
इस लियें मुझको सहज जाने दे ,
ज्यादा तो नही ,
लेकिन थोड़ी सी बस ,
छुपा लेने दे ,
सुनहरी यादों की बगियाँ  

मेरी ख्वाइशो की जंगल ,
  तूफान  आने से फह्लें
मुझको थोडा सा ठहर  जाने दो!!