ये कैसी हलचल हैं
क्यों बार बार मुझको ही,
रोकती हैं जिंदगी के फैसलें ,
ऐसे तो न थें,
नीम वाली छाँव तेरे इरादें ,
बचनपन से ही तूने तो ,
ताक झांक रखी ही ,
मेरे कच्ची निमोलियों पर ...
अब जरा
अपनी नजरों में पड़ी धुल
सावन के ओस से धो डाल ,
और इक राह पे ,
अपने पालकी को
कहारों के कन्धों से
बुड़े बरगद तक
तसल्ली से साँस लेने दे ।
ये मेरे हर तरफ ,
हलचल ही हलचल हैं ,
तू ही बता ?
क्या यें शराफत है !!
मेरे हर नन्ही सोंच
भी
तूने गागर से छलका दी ,
और हर बार ,
मुझको बनाकर बहाना
ईद के चाँद में सजा दी ।
मेरे अंदर कोई बंजड जमीं नही ;
इक दिल सा ही गाँव धड़कता हैं ,
मुस्कुराकर हैं नवाजां ,
हर तथ्य तेरे ताने बानो का ,
अब तो ये हलचल
थाम लें
और ख़त्म हो
मेरा भी सिलसिला ,
इक स्वप्न पर ,
कई स्वप्न पगडंडिओं सी
मुंडेर पे टांगने का .....
और बंद हो अब
मेरे कहकशां में
पाज़ेब तेरे हलचल का ।