अबकी ये कैसों रंग हैं सावरें ,
न तन भीगें न मन भाये ,
लागे जैसे कोई बैरन
बिना संदेस के दरवाजा पे बाट जोहें !
येहड़ देहड़ सब पिलों कर गयों ,
वो रंग न लगीयों ,
जेहन नैयन शाम बसियों !
इत उत सब करूं ,
बिन चित के साज रचाऊ ,
हिनक धिनक के काज कराऊँ ,
झूठों हिलोड़ मैं जताऊँ ,
छब में हैं तेरों रंग सावरें ,
दूजों रंग मैं कैसे लगवाऊँ !
होरी में मैं बनी बिहोरी
लेकिन तेरी लियें हैं ,सब चितचोरी
रस रंग में तू तो सोया ,
मैं तेरे चिन्तन में रही खोई !
इबरी होरी में सब ऐसों नहावे ,
अंतरमन भी रंग जावे !
वो परम सुख पावें जिन खातिर
श्याम राधा संग रास राचावें !
अबकी ये कैसों रंग हैं सावरें ,
न तन भीगें न मन भाये ,