Sunday, November 17, 2024

कैसों रंग


 अबकी ये कैसों रंग हैं सावरें ,
न तन भीगें न मन  भाये ,
  लागे जैसे कोई बैरन 
बिना संदेस के दरवाजा पे बाट जोहें !

 येहड़ देहड़ सब पिलों कर गयों  ,
वो रंग न लगीयों ,
जेहन नैयन शाम बसियों !

इत उत सब करूं ,
बिन चित के साज  रचाऊ ,
हिनक धिनक के काज कराऊँ ,
झूठों हिलोड़ मैं जताऊँ ,
छब में हैं तेरों  रंग सावरें ,
दूजों रंग मैं कैसे लगवाऊँ !

  होरी में मैं बनी बिहोरी 
लेकिन तेरी लियें हैं ,सब चितचोरी 
रस रंग में तू तो सोया ,
मैं तेरे चिन्तन में रही खोई !

इबरी होरी में सब  ऐसों नहावे ,
अंतरमन भी  रंग जावे !
वो परम सुख पावें जिन खातिर 
श्याम राधा संग रास राचावें ! 


अबकी ये कैसों रंग हैं सावरें ,
न तन भीगें न मन  भाये ,

इक खाब गाह


इक ख्वाबगाह 
 ऐसा भी हो 
जहां से दिखती  हो 
पीताम्बरी दुल्हन   सर्दियों वाली ,
नजर आयें वो दरगाह   भी   
जहां दर्ज होती हो फर्यादी अर्जियां दिल वाली ,
मन्शोख मेंहदी रंग लाती  हो  
 नसिबियत   तेरी हथेलियों पर भी !
इक ख्वाबगाह   ऐसा भी हो
 जहाँ से झाँकती  हो 
खुशियों की फुलवारी पुष्प वाटिका वाली  
इंतजार हो रिश्तों में शबरी  की नियत वाली 
ले ले कर थकें सब
 देने की लग जाएँ आदत निराली !
इक ख्वाबगाह  ऐसा भी हो
 जहाँ से मुश्कानी  खिरकी खुलती हो  ,
हर गली में बनकर बसंत वाली दामिनी
 हर खलश बन जाये ,कलश शांति का
 हो फिर हर जगह प्रेम दुलार वाली पालकी  !!
 इक ख्वाबगाह  ऐसा भी हो 
जहां से दिखती  हो पीताम्बरी दुल्हन   सर्दियों वाली !!!! 

Wednesday, October 30, 2024

 रूप सरिता के हैं कई नछत्र ,जो  तरतें रहतें हैं प्रभात   स्नेह  सदन मन  में !
हर नछ्त्र में है शशि कीरणे   इन्द्रधनुषी  , एक रंग जूठे   बैर और दूजा राधा नयन में  स्याम  रंग ....

Sunday, September 29, 2024

मेरी ख्वाइशो की जंगल

मेरी ख्वाइशो की जंगल

       तूफान  आने से फह्लें 
           मुझको थोडा सा ठहर  जाने दो 
   उड़ भी जाये छत दिल के घरोंदें से ,
   कुछ तो  जीने के सामान सजों लेने दों 
            वो क्या खाक हैं हमारा ,
                जिसे बांध कर ,
       हर बार रिश्तें के  मिनार में रचा जाएँ ,
      मेरी ख्वाइशो की जंगल ,
      तूफान  आने से फह्लें 
      मुझको थोडा सा ठहर  जाने दो
यु तो लहरें सपनो की ,
सांत ही रोया करती हैं 
दोषारोपण वाली वाटिका में 
फिर अपनी ही चुनड से ,
पोछ कर बूंदें ,
लौट जाती हैं ,
उमिंद महल में ,
किरणों के कोलाहल से डर  कर 
मिलती हैं अक्सर खिलखिलाती हँसी ,
बुजुर्ग नीम की टहनियों में ,
बहार  सकूँ अपनी गली से ,
हरिली निमोलियों का पतझड़ 
इतनी तो मुझको संभल जाने दे !
 मेरी ख्वाइशो की जंगल ,
  तूफान  आने से फह्लें 
 मुझको थोडा सा ठहर  जाने दो!!



हर तरफ  मिलेगी छाव ,
 ये  पालना तो बस मिलती थी ,
बाबुल तेरे बचपन वाली आँगन में ,
अब तो कब आ जाएँ ,
पाँव  तलें भूखें नसीबों के परिन्दें 
बिना तार और संदेस के ,
इस लियें मुझको सहज जाने दे ,
ज्यादा तो नही ,
लेकिन थोड़ी सी बस ,
छुपा लेने दे ,
सुनहरी यादों की बगियाँ  

मेरी ख्वाइशो की जंगल ,
  तूफान  आने से फह्लें
मुझको थोडा सा ठहर  जाने दो!!





 

Saturday, April 13, 2024

ग़ज़ल


जो दिल की जबान रेशमी अदा में शब्दों की डोली में आँखों से छलकती हैं उसे ग़ज़ल कहतें हैं :- 


मेरी तलाश हो तुम -2
तुझको मैंह्फुज रखेगें 
दिल की जन्नत में  
 मेरी तलाश हो तुम -2
गर हैं प्यार दुआँ ...
तो दुआँ  तुम  रहो 
गर हैं सज़ा भी इश्क 
तो सजा में मैं ही रहूँ ..
डालकर तुम पर   आलिशान सा मन 
 तुझको मैंह्फुज रखेगें 

दिल की जन्नत में  
 मेरी तलाश हो तुम -2

न कोई शक हैं ना शुबां ही सनम 
तेरी सासों के संग हैं 
 शबनमी   राबिता सा सनम 
सौपकर तुझको  सुगंध महल
 तुझको मैंह्फुज रखेगें 
दिल की जन्नत में  
 मेरी तलाश हो तुम -2

तेरी दिल की सिलवटों में 
ना होगी कोई अर्जी  मेरी 
रचना हु मैं तेरी 
 चाहें तू अब जैसे भी पढ़ 
तुझको मैंह्फुज रखेगें 
दिल की जन्नत में  
 मेरी तलाश हो तुम -2


चाहतों में कभी कोई इल्जाम न  देंगें   तुम्हें 
चाहो तो रख लो हर शय 
जो बारिश में बिखरें थें कभी 
मेरी पहचान हो तुम
तुझको मैंह्फुज रखेगें 
दिल की जन्नत में  
 मेरी तलाश हो तुम -2

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Saturday, April 28, 2018


 दिल से शायरी ताक   झाक करती हैं ,
 न खुद   सोती हैं न मुझको ही सोने देती  हैं
 गर भूले से झपक जायें  निन्दमारी रातें ,
तो  गालिबें अंदाज में जगाती  हैं ,
 पल में सरगम बनती और लम्हों  में करवट बदल लेती हैं

वो छुप छुप कर दिल टटोल रहा हैं ,
क्या हैं आस पास बस यही बटोर रहा हैं
जाने क्यूँ मुझको खुद के तराजू में तौल रहा हैं ,
मेरे  वजूद को जानकर भी वो  ,
यहाँ वहाँ   सज रहा  हैं
की सुरुवात शर्तों से ,
मेरे दिल की चाह का कारवाँ
अब डर कर ही सही
लेकिन     चाहती रंग में वो रंग रहा हैं
वैसे तो कब से अटकी थी मैं उसके दिल में ,
लेकिन वो जान  कर भी अनजान बन रहा था ,

 उमींद हैं  इस दिल को
की तू प्यार को प्यार ही रहने देगा
न खुद जिन्दगी में भाग कर
किनारा  पायेगा
और न मुझको भी   ...किनारे से मिलने देगा। ..
ये प्रेम दरिया हैं। ..डूब कर ही बैकुंठ मिलता हैं 

Wednesday, July 30, 2014

ग़ज़ल -फिर वही बात दिल में , फिर वही शाम सिने में

                                    

फिर वही बात दिल में , फिर वही शाम सिने में  
ढल रहें हो तुम फिर आज बनके दिल में ज़ाम 
              फिर वही बात दिल में.…… 

जुस्तजू की दरम्यां में 

क्या कहें क्या छुपा हैं 

रा-जें जिंदगी हैं। … 
या तेरे होने का ऐतबार। । 
फिर वही बात दिल में , फिर वही शाम सिने में  


हरसू हैं तूँ  हर तरफ तूँ। .... 
हैं यें मेरी साँस। …… 
यां तेरे होने का  अहसास !!
फिर वही बात दिल में 


जाकती पलकों से 
बुन रहा हैं क्या मन 
हैं क़रीब ज़न्नत  
या सज रहा हैं फिर ख्वाब -गाह 
फिर वही बात दिल में


जीना हैं मुझको ज़ी भर के 
हाँ मगर शर्त ये 
ढलती रहें हर शाम
 संग तेरें रहनुमां 
फिर वही बात दिल में , फिर वही शाम सिने में