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Wednesday, July 30, 2014

ग़ज़ल -फिर वही बात दिल में , फिर वही शाम सिने में

                                    

फिर वही बात दिल में , फिर वही शाम सिने में  
ढल रहें हो तुम फिर आज बनके दिल में ज़ाम 
              फिर वही बात दिल में.…… 

जुस्तजू की दरम्यां में 

क्या कहें क्या छुपा हैं 

रा-जें जिंदगी हैं। … 
या तेरे होने का ऐतबार। । 
फिर वही बात दिल में , फिर वही शाम सिने में  


हरसू हैं तूँ  हर तरफ तूँ। .... 
हैं यें मेरी साँस। …… 
यां तेरे होने का  अहसास !!
फिर वही बात दिल में 


जाकती पलकों से 
बुन रहा हैं क्या मन 
हैं क़रीब ज़न्नत  
या सज रहा हैं फिर ख्वाब -गाह 
फिर वही बात दिल में


जीना हैं मुझको ज़ी भर के 
हाँ मगर शर्त ये 
ढलती रहें हर शाम
 संग तेरें रहनुमां 
फिर वही बात दिल में , फिर वही शाम सिने में  






2 comments:

  1. इस छोटी सी जिंदगी में ढेर सारी चीजें बेतरतीब है. पर सब की अपनी एक मुकम्मल मौजूदगी है. हमें उसी शब्द, अक्षर या फिर उसके भाव को आत्मसात करना पड़ता है.…पूरी गजल का मजमून यही है ..

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