Friday, April 22, 2011

मन

दिन जल्दी-जल्दी ढलता है: मन: "मन जो कहता है ,कास की हम वही कर पाते ? हम सोचते कुछ है और होता कुछ और है | फिर भी क्यों हम मन के बारिश में भींगे जाते है ? चल परते है उस ..."

मन

मन जो कहता है ,कास की हम वही कर पाते ?
हम सोचते कुछ है और होता कुछ और है |
फिर भी क्यों हम मन के बारिश में भींगे जाते है ?
चल परते है उस रह पर जिसकी मंजिल का पता ...................
खुद मन भी नही जानती ............
एक धुन है मन और हमारे सोच की बीच .............
जाने क्यों हम इस मन के सागर का किनारा चाह कर भी,
अपनी पतवार से नही मिलाते..............
शायद एक सोच है की मन जो कहता है , वही सच है "
और इसी सोच के साथ हम कर्वी निमोली को,
अपनी कोशिसो के मिसरी में खुला कर
कभी तिनके पर कभी बूंदों पर बरसाते रहते है ............
मन तो मन है,
चंचल बनकर हमे
एक ड़ाल से दूसरी ड़ाल तक
बसंत के झूलो सा झूलता रहता है |

Tuesday, March 15, 2011

दिन जल्दी-जल्दी ढलता है

दिन जल्दी-जल्दी ढलता है -
हो जाय न पथ में रात कहीं,
मंज़िल भी तो है दूर नहीं -
यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!

बच्चे प्रत्याशा में होंगे,
नीड़ों से झाँक रहे होंगे -
यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चंचलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!

मुझसे मिलने को कौन विकल?
मैं होऊँ किसके हित चंचल? -
यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरता उर में विह्वलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!