जब प्रेम किसी भी मन को छू लेता हैं, तो ये सच है की रूह तक शुद्ध भाव उमरतें हैं और इन्सान को पूरी दुनिया उसकी प्रेम की कायनात लगने लगती हैं ।
प्रेम का स्वार्थ से कोई रिश्ता नही होता ये बस निश्छल धारा हैं जो हर भटके पथ को जीने की राह दिखाता हैं ।
कुछ ऐसे ही भावों की टोकरी है मेरी ये कविता ।
तुम जो आये हो जीवन में
हर बात में समान्तर है ,
तेरी आखों में मेरे सोच ,
सागर की करवटों में बलखाती हैं !
तुम जो आयें हो जीवन में , हर बात में समान्तर है !
हर पल उतरता है दिल में ,
बनकर महाकाव्य ,
छनिक ,छनिक में ,
बदलता है अब तों ,
भाव काव्येंतर मिर्दुल प्रीत का ,
तेरे लिये हूँ मै अब ,
पग छावनी पथ पथ ,
आ बांध दू तुझको ,
मैं मेरा सारा सुभवन,
तुम जो आये हो जीवन में, तो मन बना मधुवन हैं !
कणिक लता की अधखिली ,
पंखुडियां औंतार्मन करती अधर अधर ,
मेरा चित तो बन गया ,
तेरे वन का विराम अस्थल
तुम जो आयें हो जीवन में ,तो मैं गंगा, समंदर बन हिलरती हूँ !
जाओ तुम दुर या रहो पास ,
या कतराओ प्रीत गली से,
इन बातों से अब नही धुलेगा ,
स्याही प्रेमसमंध का ,
ना रखों याद्तन दूर से भी दूर तक मेरी अटखेली से ,
ना रोकुगी ,ना आवाज़ से पुकारुगी ,
ना मैं बजाकर पाजेबं रीझाउगी ,
अमर प्रेम की प्रिभाशिनी मैं
अखण्ड ज्योती बन रौशिनी
तेरी नगरी में अन्धकार पे बर्बस ही छा जाउगी ,
इतराता रह तू लेकर चंचल द्वार मन ,
मैं गंगा इक दिन सागर में कांतिमय हो जाउगी !!
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सार्थक सृजन, आभार.
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें.
jee bilkul आभार.ke liye shukriya
Deleteसुन्दर शब्द संयोजन...
ReplyDeleteअच्छे भाव...
अनु
thank you Anu jee
Deleteहर पल उतरता है दिल में ,
ReplyDeleteबनकर महाकाव्य
प्रेम पर एक और बेमिशाल कविता
कवियत्री को बहुत बधाई...... दिल से