हर तरफ मिलेगी छाव ,
ये पालना तो बस मिलती थी ,
बाबुल तेरे बचपन वाली आँगन में ,
अब तो कब आ जाएँ ,
पाँव तलें भूखें नसीबों के परिन्दें
बिना तार और संदेस के ,
इस लियें मुझको सहज जाने दे ,
ज्यादा तो नही ,
लेकिन थोड़ी सी बस ,
छुपा लेने दे ,
सुनहरी यादों की बगियाँ
मेरी ख्वाइशो की जंगल ,
तूफान आने से फह्लें
मुझको थोडा सा ठहर जाने दो!!
इतनी तो मुझको संभल जाने दे !
ReplyDeleteमेरी ख्वाइशो की जंगल..
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और फैलते जंगल का दमन जरूरी है.... ठीक -ठाक पोस्ट है ..
sukriya Rahul jee aap kaise hain
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