दिल से शायरी ताक झाक करती हैं ,
न खुद सोती हैं न मुझको ही सोने देती हैं
गर भूले से झपक जायें निन्दमारी रातें ,
तो गालिबें अंदाज में जगाती हैं ,
पल में सरगम बनती और लम्हों में करवट बदल लेती हैं
वो छुप छुप कर दिल टटोल रहा हैं ,
क्या हैं आस पास बस यही बटोर रहा हैं
जाने क्यूँ मुझको खुद के तराजू में तौल रहा हैं ,
मेरे वजूद को जानकर भी वो ,
यहाँ वहाँ सज रहा हैं
की सुरुवात शर्तों से ,
मेरे दिल की चाह का कारवाँ
अब डर कर ही सही
लेकिन चाहती रंग में वो रंग रहा हैं
वैसे तो कब से अटकी थी मैं उसके दिल में ,
लेकिन वो जान कर भी अनजान बन रहा था ,
उमींद हैं इस दिल को
की तू प्यार को प्यार ही रहने देगा
न खुद जिन्दगी में भाग कर
किनारा पायेगा
और न मुझको भी ...किनारे से मिलने देगा। ..
ये प्रेम दरिया हैं। ..डूब कर ही बैकुंठ मिलता हैं