Saturday, April 13, 2024

ग़ज़ल


जो दिल की जबान रेशमी अदा में शब्दों की डोली में आँखों से छलकती हैं उसे ग़ज़ल कहतें हैं :- 


मेरी तलाश हो तुम -2
तुझको मैंह्फुज रखेगें 
दिल की जन्नत में  
 मेरी तलाश हो तुम -2
गर हैं प्यार दुआँ ...
तो दुआँ  तुम  रहो 
गर हैं सज़ा भी इश्क 
तो सजा में मैं ही रहूँ ..
डालकर तुम पर   आलिशान सा मन 
 तुझको मैंह्फुज रखेगें 

दिल की जन्नत में  
 मेरी तलाश हो तुम -2

न कोई शक हैं ना शुबां ही सनम 
तेरी सासों के संग हैं 
 शबनमी   राबिता सा सनम 
सौपकर तुझको  सुगंध महल
 तुझको मैंह्फुज रखेगें 
दिल की जन्नत में  
 मेरी तलाश हो तुम -2

तेरी दिल की सिलवटों में 
ना होगी कोई अर्जी  मेरी 
रचना हु मैं तेरी 
 चाहें तू अब जैसे भी पढ़ 
तुझको मैंह्फुज रखेगें 
दिल की जन्नत में  
 मेरी तलाश हो तुम -2


चाहतों में कभी कोई इल्जाम न  देंगें   तुम्हें 
चाहो तो रख लो हर शय 
जो बारिश में बिखरें थें कभी 
मेरी पहचान हो तुम
तुझको मैंह्फुज रखेगें 
दिल की जन्नत में  
 मेरी तलाश हो तुम -2

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Saturday, April 28, 2018


 दिल से शायरी ताक   झाक करती हैं ,
 न खुद   सोती हैं न मुझको ही सोने देती  हैं
 गर भूले से झपक जायें  निन्दमारी रातें ,
तो  गालिबें अंदाज में जगाती  हैं ,
 पल में सरगम बनती और लम्हों  में करवट बदल लेती हैं

वो छुप छुप कर दिल टटोल रहा हैं ,
क्या हैं आस पास बस यही बटोर रहा हैं
जाने क्यूँ मुझको खुद के तराजू में तौल रहा हैं ,
मेरे  वजूद को जानकर भी वो  ,
यहाँ वहाँ   सज रहा  हैं
की सुरुवात शर्तों से ,
मेरे दिल की चाह का कारवाँ
अब डर कर ही सही
लेकिन     चाहती रंग में वो रंग रहा हैं
वैसे तो कब से अटकी थी मैं उसके दिल में ,
लेकिन वो जान  कर भी अनजान बन रहा था ,

 उमींद हैं  इस दिल को
की तू प्यार को प्यार ही रहने देगा
न खुद जिन्दगी में भाग कर
किनारा  पायेगा
और न मुझको भी   ...किनारे से मिलने देगा। ..
ये प्रेम दरिया हैं। ..डूब कर ही बैकुंठ मिलता हैं 

Wednesday, July 30, 2014

ग़ज़ल -फिर वही बात दिल में , फिर वही शाम सिने में

                                    

फिर वही बात दिल में , फिर वही शाम सिने में  
ढल रहें हो तुम फिर आज बनके दिल में ज़ाम 
              फिर वही बात दिल में.…… 

जुस्तजू की दरम्यां में 

क्या कहें क्या छुपा हैं 

रा-जें जिंदगी हैं। … 
या तेरे होने का ऐतबार। । 
फिर वही बात दिल में , फिर वही शाम सिने में  


हरसू हैं तूँ  हर तरफ तूँ। .... 
हैं यें मेरी साँस। …… 
यां तेरे होने का  अहसास !!
फिर वही बात दिल में 


जाकती पलकों से 
बुन रहा हैं क्या मन 
हैं क़रीब ज़न्नत  
या सज रहा हैं फिर ख्वाब -गाह 
फिर वही बात दिल में


जीना हैं मुझको ज़ी भर के 
हाँ मगर शर्त ये 
ढलती रहें हर शाम
 संग तेरें रहनुमां 
फिर वही बात दिल में , फिर वही शाम सिने में  






Sunday, September 22, 2013

हो रही बंजड क्यों

 
हो रही बंजड क्यों 
 
ये मेरा अन्तः भावभर हैं 
 
या की दुविधा वाटिका की प्रवाह 
 
कोई वास्तविकता किरण भी हैं 
 
या हैं मन टाँगें का लचकता पहिया 
 
रोकती रहती हूँ जिसे मैं ,
 
वो बन  विचार वाहनी 
 
अकुला रही मुझे बार बार हैं 
 
मैं अवलोकन करती नैनों से
 
पूछती  हूँ नीलगगन से 
 
रिश्तों की धरती -हो रही बंजड क्यों ?
 
 
जो हैं सब  अपने 
 
तो रिश्तों का मन विरान  क्यों 
 
आह निकलने से पहलें ,
 
होता नही इलाज क्यों ?
 
जाने ये कौन सी पुरवा ब्यार  
 
उड़ाती ले जा रही हैं 
 
रंगोलीयों का कारवाँ 
 
कोई छावनी भी नही 
 
कलमुई इस ब्यार  का । 
 
जब रंगरेज़ के ही घर में 
 
रंगों का सुखाड़ हैं 
 
तो रुदन ही करती 
 
उड़ जाएगी रिश्तों की 
 
अध् पकी बाजड़े की गढ़रिया
 
इस मन से उस मन का हाल 
 
अब  कबूतर भी नही  बाँचते 
 
ऐसे में क्या  पुछू  
 
जो न पूछूँ तो निशा  बोझिल  हो जायें 
 
चल प्रारब्ध न सही 
 
छितिज से ही बतां --
 
रिश्तों की धरती -हो रही बंजड क्यों ?
   
 
  हर इक इन्सान बस भटका रहा हैं 
 
 खुशियों को खुशियों की राह से 
 
कभी बडपन दिखा कर 
 
तो कभी संस्कार  की बेड़ लगाकर 
 
जाने कब तक 
 
जलती रहेगी रिश्तों की होलिका 
 
मर्यादा ,रिवाज़ तेरी गोद में 
 
क्या बोलेगा इक दिन 
 
" फिर से कागा"
 
रिश्तों वाली छत की मुंडेर से 
 
जब  जब होगा   प्रहार 
 
रिश्तों के आँगन में 
 
गूंजती रहेगी पायल 
 
सरगम भरे सवाल से 
 
रिश्तों की धरती -हो रही बंजड क्यों
 
हो रही बंजड क्यों ??
 
   

 
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Sunday, July 21, 2013


ये कैसी हलचल हैं  

क्यों बार बार मुझको ही, 
रोकती  हैं जिंदगी के फैसलें ,
ऐसे तो न थें,
 नीम वाली  छाँव तेरे इरादें ,
बचनपन से ही तूने तो ,
ताक  झांक रखी ही ,
मेरे कच्ची  निमोलियों पर ...
अब जरा 
अपनी नजरों में पड़ी धुल  
सावन के ओस से धो डाल ,
और  इक राह पे ,
अपने पालकी को 
कहारों के कन्धों से  
  बुड़े बरगद तक 
 तसल्ली से साँस लेने दे ।    

ये मेरे हर तरफ ,
हलचल ही हलचल हैं ,
तू ही बता ?

क्या यें शराफत है  !!
मेरे हर नन्ही सोंच 
भी 
तूने गागर से  छलका दी ,
और हर बार ,
मुझको बनाकर बहाना
ईद के चाँद में सजा दी  ।  

 मेरे अंदर कोई  बंजड जमीं नही ;
इक दिल सा ही गाँव धड़कता हैं ,
मुस्कुराकर हैं नवाजां ,
हर तथ्य  तेरे ताने बानो का ,
अब तो ये हलचल 
थाम  लें  
और ख़त्म हो 
मेरा भी सिलसिला ,
इक स्वप्न पर ,
कई स्वप्न पगडंडिओं सी 
मुंडेर पे  टांगने का .....  
और बंद हो अब 
मेरे कहकशां में 
पाज़ेब तेरे हलचल का । 

Saturday, June 15, 2013

मेरी ख्वाइशो की जंगल

मेरी ख्वाइशो की जंगल

       तूफान  आने से फह्लें 
           मुझको थोडा सा ठहर  जाने दो 
   उड़ भी जाये छत दिल के घरोंदें से ,
   कुछ तो  जीने के सामान सजों लेने दों 
            वो क्या खाक हैं हमारा ,
                जिसे बांध कर ,
       हर बार रिश्तें के  मिनार में रचा जाएँ ,
      मेरी ख्वाइशो की जंगल ,
      तूफान  आने से फह्लें 
      मुझको थोडा सा ठहर  जाने दो
यु तो लहरें सपनो की ,
सांत ही रोया करती हैं 
दोषारोपण वाली वाटिका में 
फिर अपनी ही चुनड से ,
पोछ कर बूंदें ,
लौट जाती हैं ,
उमिंद महल में ,
किरणों के कोलाहल से डर  कर 
मिलती हैं अक्सर खिलखिलाती हँसी ,
बुजुर्ग नीम की टहनियों में ,
बहार  सकूँ अपनी गली से ,
हरिली निमोलियों का पतझड़ 
इतनी तो मुझको संभल जाने दे !
 मेरी ख्वाइशो की जंगल ,
  तूफान  आने से फह्लें 
 मुझको थोडा सा ठहर  जाने दो!!



हर तरफ  मिलेगी छाव ,
 ये  पालना तो बस मिलती थी ,
बाबुल तेरे बचपन वाली आँगन में ,
अब तो कब आ जाएँ ,
पाँव  तलें भूखें नसीबों के परिन्दें 
बिना तार और संदेस के ,
इस लियें मुझको सहज जाने दे ,
ज्यादा तो नही ,
लेकिन थोड़ी सी बस ,
छुपा लेने दे ,
सुनहरी यादों की बगियाँ  

मेरी ख्वाइशो की जंगल ,
  तूफान  आने से फह्लें
मुझको थोडा सा ठहर  जाने दो!!





 

Wednesday, March 27, 2013

कैसों रंग


 अबकी ये कैसों रंग हैं सावरें ,
न तन भीगें न मन  भाये ,
  लागे जैसे कोई बैरन 
बिना संदेस के दरवाजा पे बाट जोहें !

 येहड़ देहड़ सब पिलों कर गयों  ,
वो रंग न लगीयों ,
जेहन नैयन शाम बसियों !

इत उत सब करूं ,
बिन चित के साज  रचाऊ ,
हिनक धिनक के काज कराऊँ ,
झूठों हिलोड़ मैं जताऊँ ,
छब में हैं तेरों  रंग सावरें ,
दूजों रंग मैं कैसे लगवाऊँ !

  होरी में मैं बनी बिहोरी 
लेकिन तेरी लियें हैं ,सब चितचोरी 
रस रंग में तू तो सोया ,
मैं तेरे चिन्तन में रही खोई !

इबरी होरी में सब  ऐसों नहावे ,
अंतरमन भी  रंग जावे !
वो परम सुख पावें जिन खातिर 
श्याम राधा संग रास राचावें ! 


अबकी ये कैसों रंग हैं सावरें ,
न तन भीगें न मन  भाये ,