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Sunday, July 21, 2013


ये कैसी हलचल हैं  

क्यों बार बार मुझको ही, 
रोकती  हैं जिंदगी के फैसलें ,
ऐसे तो न थें,
 नीम वाली  छाँव तेरे इरादें ,
बचनपन से ही तूने तो ,
ताक  झांक रखी ही ,
मेरे कच्ची  निमोलियों पर ...
अब जरा 
अपनी नजरों में पड़ी धुल  
सावन के ओस से धो डाल ,
और  इक राह पे ,
अपने पालकी को 
कहारों के कन्धों से  
  बुड़े बरगद तक 
 तसल्ली से साँस लेने दे ।    

ये मेरे हर तरफ ,
हलचल ही हलचल हैं ,
तू ही बता ?

क्या यें शराफत है  !!
मेरे हर नन्ही सोंच 
भी 
तूने गागर से  छलका दी ,
और हर बार ,
मुझको बनाकर बहाना
ईद के चाँद में सजा दी  ।  

 मेरे अंदर कोई  बंजड जमीं नही ;
इक दिल सा ही गाँव धड़कता हैं ,
मुस्कुराकर हैं नवाजां ,
हर तथ्य  तेरे ताने बानो का ,
अब तो ये हलचल 
थाम  लें  
और ख़त्म हो 
मेरा भी सिलसिला ,
इक स्वप्न पर ,
कई स्वप्न पगडंडिओं सी 
मुंडेर पे  टांगने का .....  
और बंद हो अब 
मेरे कहकशां में 
पाज़ेब तेरे हलचल का । 

8 comments:

  1. Bilkul bakwaas , kuch samajh nahi aaya .

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  2. Apni mann ki hulchul ko kagaz aur kalam men utara hai,
    Samajh men aaye nahi to aapki kya khata!

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  3. इस मौसम में भला और क्या होगा ..? हलचल के सिवा ....सब कुछ तो सावन की ओस में धुला-धुला नजर आ ही रहा है .....हलचल मचाती पोस्ट...

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  4. मन के भावों की अंजान हलचल ...

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    1. दिगम्बर जी बहुत शुक्रिया ...

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