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Friday, November 16, 2012


मुझको मुझी से मिलवा तुमने ,
ये कैसा जादू चलाया तुमने,
बिखरी हुई मेरी स्याहियों से ,
मेरी ही कहानी सुनाई तुमने ,
कोरें छत के कोनो में ,
रच -रच के अपनी  छबी  सजाई तुमने ,
मेरी पगडण्डी यों में  राह बनाई तुमने ,
 मुझको मुझी से मिलवा तुमने 
ये कैसा जादू चलाया तुमने!!


इस कदर हैं वो शामिल मुझ में ,
हर पल में , हजार पल बनके याद आता हैं मुझको !

आँखों से ख्वाब तक सफ़र में तुम हो ,
जिस राह मोडू पलकें हर मोड़ पे तुम हों !


तेरे शहर से होकर जो आयें '
अब आपने ही घर पता पूछ्तें हैं हम  सन्नाटों से !


ये जो सुरूर हैं तेरी आँखों का मेरी आँखों में ''
ये जो छाती हैं तेरी रंगत मेरी हसरतों में '
क्यों तुझको आपना बनाती  हूँ   ............
जबकि मालूम हैं मुझको हक़ीकत अधूरी कहानियों की ,



उसकी परेशानियों ने रोका उसे 
इकरारें मुहब्बत से '
वरना चाहता तो वो भी होगा ....दिल गहराईयों से !!

रखों ध्यान की किसी का दिल न टूटें 
और गर मिल ही जाएँ ..
अध्- ढकी रिश्तों की लाशें ....तो कफन तलक साथ निभायों दोश्तों !!!   

आबाद होकर भी वो रहा बर्बाद सा , हम बर्बाद हो कर भी रहें आबाद तेरे इश्क में 

* कब तक रहे कोई वक्त की आगोश में ,कभी तो वक़्त भी रहें मेरी आगोश में।









4 comments:

  1. हम बर्बाद हो कर भी रहें आबाद तेरे इश्क में
    ................................................आपकी इस कविता को पढ़कर उम्दा शायर अहमद नसीम कासमी साहब के दो शब्द याद आ गए ..
    -------------------------
    उनकी पलकों पे सितारे अपने होंठों पे हँसी
    किस्सा-ए-गम कहते कहते हम यहाँ तक आ गए

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    1. kitni bdi baat hain na in shbdon men ....sukriya Rahul jee.....

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  2. बहुत ही सुन्दर रचना

    बहुत अच्छा लगा
    Sabse achcha..."आबाद होकर भी वो रहा बर्बाद सा, हम बर्बाद हो कर भी रहें आबाद तेरे इश्क में
    कब तक रहे कोई वक्त की आगोश में ,कभी तो वक़्त भी रहें मेरी आगोश में।

    Salam aapko aapki es adbhut rachana ke liye

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