Thursday, August 14, 2025

हम कह नहीं पाते

चाहती हूं कि कह दूं 
जो अंतर मन में उत्तर हैं
तेरे मेरे इश्क़ के विवादों का
रुक कर थम कर भावनाएं 
उमर घूमर कर रह जाती हैं 
अफ़सोस कि हम कह नहीं पाते।

आज सोचा हैं कि 
चाय मसाले वाली 
मेज़ पर रखेंगे 
और हाथ थामकर कह देगे 
जो हमारी वेदना हैं ।

शाम से रात ढलती गई 
हम करवटों में सिमटते गए
आयेंगे प्रीतम ये सोचते रहे 
आंचल काजल पोछती रही
हम ख्वाबों में बाहों में लिपटे रहे ।

क्यों हैं ऐसा की हम आपको 
भावनाएं मन की कह नहीं पाते 
प्रेम लगन में भींगते है दिन भर 
जो आओ सामने तो हया में छिप जाते।
क्या हैं क्यों हैं
ये भावनाएं मन की 
हम से हम तक ही रह जाती है।
हम भी न बड़े वैसे ही हैं 
अपनी ही बातें आप तक 
पहुंचाने में आनंद आग में , जल जाते हैं।
कहना तो होता हैं बहुत कुछ 
हम बस कह नहीं पाते।