जो अंतर मन में उत्तर हैं
तेरे मेरे इश्क़ के विवादों का
रुक कर थम कर भावनाएं
उमर घूमर कर रह जाती हैं
अफ़सोस कि हम कह नहीं पाते।
आज सोचा हैं कि
चाय मसाले वाली
मेज़ पर रखेंगे
और हाथ थामकर कह देगे
जो हमारी वेदना हैं ।
शाम से रात ढलती गई
हम करवटों में सिमटते गए
आयेंगे प्रीतम ये सोचते रहे
आंचल काजल पोछती रही
हम ख्वाबों में बाहों में लिपटे रहे ।
क्यों हैं ऐसा की हम आपको
भावनाएं मन की कह नहीं पाते
प्रेम लगन में भींगते है दिन भर
जो आओ सामने तो हया में छिप जाते।
क्या हैं क्यों हैं
ये भावनाएं मन की
हम से हम तक ही रह जाती है।
हम भी न बड़े वैसे ही हैं
अपनी ही बातें आप तक
पहुंचाने में आनंद आग में , जल जाते हैं।
कहना तो होता हैं बहुत कुछ
हम बस कह नहीं पाते।