मेरे ख़्वाब मुझे इतना बता ...
क्यों है आजकल तेरा मन खोया खोया ?
तेरे कूछ छन्द ही तो मेरे पलकों के सिरहाने ,
कवारे सिलवटों के दर सजाते है।
मुझसे ना तू अपनी मोतियों की नगरी छुपा ,
देदे मुझको जरा एक आना दो आना ।
मेरी जो रुबाईया है, वो भी तो अमानत हैं तेरी
जरा सोच मेहर बनकर तू क्या पायेगी ।
मेरे नींद के कोरी कटोरियों में ,
आज बरस जा तु निस्ब्द बनकर ।
मेरे ख्वाब मुझेइतना बता ...
हैं अभी ख्वाबों के दीवारों दर कवारे ....
ना कर तू इस्तकबाल दरख्त ऐ आरजू का ,
रहने दे मेरे ख्वाबों को थोरा और बेताहसा ..
इन आँखों के रँगरेज से बच के कहा जायेगी ,
बर्फीली घाटियों में भी ,मेरी हथेलियों में तू सज जायेगी ।
आ अब वहां चले ...जहाँ हक़ीकत की जमीं पे ......तू सरसों और मै कावेरी बन जायुगी ....।।
इन आँखों के रँगरेज से बच के कहा जायेगी ,
ReplyDeleteबर्फीली घाटियों में भी ,मेरी हथेलियों में तू सज जायेगी ।
Dil ko chhu gai...
nice one
thanks
चलिए... काफी दिनों के बाद आपने कुछ लिखा तो सही...
ReplyDeleteनींद की कटोरियों में
जो चाँद छुपा है
वो एक निशब्द ख्वाब
आपके आँगन में
बेसुध है.....
बंजारा है....
आपने बहुत ही सुन्दर लिखा... थोड़ा शब्दों को सजा दीजिये....
बहुत सुन्दर भाव है....
ReplyDeleteलिखते रहिये.....
अनु
क्या कहने, बहुत सुंदर
ReplyDeleteआपको पढना वाकई सुखद अनुभव है।
Shukriya 🌹
Deleteबहुत खूब...|
ReplyDelete