इक ख्वाबगाह
ऐसा भी हो
जहां से दिखती हो
पीताम्बरी दुल्हन सर्दियों वाली ,
नजर आयें वो दरगाह भी
जहां दर्ज होती हो फर्यादी अर्जियां दिल वाली ,
मन्शोख मेंहदी रंग लाती हो
नसिबियत तेरी हथेलियों पर भी !
इक ख्वाबगाह ऐसा भी हो
जहाँ से झाँकती हो
खुशियों की फुलवारी पुष्प वाटिका वाली
इंतजार हो रिश्तों में शबरी की नियत वाली
ले ले कर थकें सब
देने की लग जाएँ आदत निराली !
इक ख्वाबगाह ऐसा भी हो
जहाँ से मुश्कानी खिरकी खुलती हो ,
हर गली में बनकर बसंत वाली दामिनी
हर खलश बन जाये ,कलश शांति का
हो फिर हर जगह प्रेम दुलार वाली पालकी !!
इक ख्वाबगाह ऐसा भी हो
जहां से दिखती हो पीताम्बरी दुल्हन सर्दियों वाली !!!!
ख्वाबगाह की हसरत ...बेताब समंदर को पलकों पर उतारने की हसरत ....
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