Friday, May 23, 2025

बाबुल तुम बरगद की छांव हो

बाबुल तुम बरगद की छांव हो।
दुनिया की भरी दुपहरी में घावं हो 
बाबुल तुम बरगद की छांव हो 

कली बन खिली तुम्हारे आंगन 
तुम राजा नहीं पर हमें राजकुमारी सा रखा 
मुझे याद है तुम्हारा कहना मैं हूं न 
जा चला ले साइकिल मैं चल रहा तेरा साया बन तेरे साथ हूं l
पढ़ा लिखा इस जमाने में चलना सिखाया 
रूढ़िवादी विचारों से लड़ना सिखाया
मां ने तो पराया धन समझा पर तुम्हारा धन मैं थी
तुम सुनते समाज के ताने पर तुम्हारा आजाद मन मैं थी

रोटी मेरी गोल न थी पर तुम्हे खाना मेरे हाथ से भाया
मेरे अजीबो गरीब निर्णय समाज के दायरों से परे थे 
उन दायरों से पार नया संसार तुमने सजाया l

राजपूताना शान से मैने जब अंतर्जातीय विवाह का प्रस्ताव रखा , सबने रोका 
पर मेरा अंतर्मन पढ़ उसे सही तुमने ठहराया l

तेरी छांव से परे जब मैने नई दुनिया बनाई 
तेरी दुआओं ने रंग भर दिए , तेरे दरख़्त की छांव में जो बड़ी हुई जब चली अपनी डागरिया , तूने आत्मविश्वास की डोर से उसे सजाया थमा मुझे जब भी आंधी तूफान मेरे घर आया , तेरी आवाज गूंजती रही इन कानों में है मैं हूं न l

लगता है आज भी उसी ठंडक के साय में साथ हो 
बाबुल तुम बरगद की छांव हो


No comments:

Post a Comment