इक धुंध सी हैं जिंदगी
थोड़ी खामोश थोड़ी गूम सी हैं जिंदगी
असफल तो ऐसे , करती हैं
जैसे मेरी सौतन हैं जिंदगी
थोड़ी धुप भर तलाश हैं जिंदगी
छाँव की छाँव से डरती हैं जिंदगी
इक धुंध सी हैं जिंदगी....
अब तो मेरे नाम से भी अजनबी हैं जिंदगी
गर साँस लेने को कहतें जिंदगी
तो नींद की तलाश में जागती रहती हैं जिंदगी।
थोड़ी धुप भर तलाश हैं जिंदगी
छाँव की छाँव से डरती हैं जिंदगी
इक धुंध सी हैं जिंदगी....
अब तो मेरे नाम से भी अजनबी हैं जिंदगी
गर साँस लेने को कहतें जिंदगी
तो नींद की तलाश में जागती रहती हैं जिंदगी।
इक धुंध सी हैं जिंदगी....
मेरी हर कोशिश को , विफल किया
मेरी तो हर पहर में
चौराहें की बीच हैं जिंदगी
हिसाब में बड़ी पक्की हैं जिंदगी
सुबह हसाया तो रात भर रुलाती हैं जिंदगी।
इक धुंध सी हैं जिंदगी......
हिसाब में बड़ी पक्की हैं जिंदगी
सुबह हसाया तो रात भर रुलाती हैं जिंदगी।
इक धुंध सी हैं जिंदगी......
शक्ल तो हैं ऐसी बनाई
जैसे कोई दुश्मन हो जिंदगी
देने की तो जरा सा भी नियत नही हैं
बस मुझसे छिनकर जीती आयी हैं जिंदगी
इक धुंध सी हैं जिंदगी....
बैरन हैं ऐसी सौतन बनी की
मेरी गलियों में भी
पत्थरों का ही मन हैं फेंकती हैं जिंदगी
मेहनत की हर सफ़र में , हराती आई हैं
साँसों की सुनी छत और
आखों में सपनो का इंतजार लियें
देखें कब तक युही भटकती हैं जिंदगी
इक धुंध सी हैं जिंदगी....
थोड़ी खामोश थोड़ी गूम हैं जिंदगी
ये मेरा अंत नहीं , सुनो
मैं हु विचारों की वीर योद्धा
यू ही हार जाऊंगी नहीं,
सुन ओ जिंदगी
विफलता को सफ़ल बना दूं
वीरांगना मैं मन भंवर की
तीर बाण उतार चढ़ाओ के
जो जो तू देती आई बचपन से
सब को तो समेटा हैं ,
वीर मन से
मैं विरह नहीं , वीरता की धुन हु
नाचती हु छम छम
जिंदगी तेरे रणभूमि में।
जितने रस , सुख गए,
जितने हरे पत्ते सुख गए
सब को वीरांगना रस से सिंच रही
अब , तक हारी नहीं
अब तक टूटी नहीं
मैं विजय शंख बजाऊंगी
बस कुछ देर और हैं ,
ये युद्ध
सूरज ढला, तलवार टूटा
और स्मृति बसंत की
सजाकर आंचल में
मैं रक्त पात , नहीं ज्योति कलश छलकाऊगी
वीरांगना मैं जीवन के हर युद्ध से जीत जाऊंगी ।