Saturday, May 31, 2025

इक धुंध सी हैं जिंदगी , ( वीर मन हारता कब हैं )



इक धुंध सी हैं जिंदगी
थोड़ी खामोश थोड़ी गूम   सी हैं जिंदगी
असफल तो ऐसे , करती हैं
जैसे मेरी सौतन हैं जिंदगी 

थोड़ी  धुप भर तलाश हैं जिंदगी
छाँव  की छाँव  से डरती हैं जिंदगी
इक धुंध सी हैं जिंदगी....
अब तो मेरे नाम से भी अजनबी हैं जिंदगी
गर साँस लेने को कहतें जिंदगी
तो नींद की तलाश में जागती रहती हैं जिंदगी।
इक धुंध सी हैं जिंदगी....

मेरी हर कोशिश को , विफल किया 
मेरी तो हर पहर में 
चौराहें  की बीच हैं  जिंदगी
   हिसाब में बड़ी पक्की हैं जिंदगी
सुबह हसाया तो  रात भर रुलाती हैं जिंदगी।
इक धुंध सी हैं जिंदगी......

शक्ल तो हैं ऐसी   बनाई
जैसे कोई दुश्मन हो जिंदगी
देने की तो जरा सा भी  नियत नही हैं
बस मुझसे छिनकर जीती आयी हैं जिंदगी
इक धुंध सी हैं जिंदगी....

बैरन हैं ऐसी सौतन बनी की
मेरी गलियों में भी
 पत्थरों का ही मन हैं फेंकती हैं जिंदगी 
मेहनत की हर सफ़र में , हराती आई हैं 
साँसों की सुनी छत और
 आखों में सपनो का   इंतजार लियें
देखें कब तक युही भटकती हैं जिंदगी
इक धुंध सी हैं जिंदगी....

थोड़ी खामोश थोड़ी गूम   हैं जिंदगी
ये मेरा अंत नहीं , सुनो 
मैं हु विचारों की वीर योद्धा 
यू ही हार जाऊंगी  नहीं,
सुन ओ जिंदगी 
विफलता को सफ़ल बना दूं 
वीरांगना मैं मन भंवर की 
तीर बाण उतार चढ़ाओ के 
जो जो तू देती आई बचपन से
सब को तो समेटा हैं , 
वीर मन से
मैं विरह नहीं , वीरता की धुन हु
नाचती हु छम छम 
जिंदगी तेरे  रणभूमि में।
जितने रस , सुख गए,
जितने हरे पत्ते सुख गए
सब को वीरांगना रस से सिंच रही
अब , तक हारी नहीं 
अब तक टूटी नहीं 
मैं विजय शंख बजाऊंगी 
बस कुछ देर और हैं ,
ये युद्ध 
सूरज ढला, तलवार टूटा 
और स्मृति बसंत की 
सजाकर आंचल में 
मैं रक्त पात , नहीं ज्योति कलश छलकाऊगी 
वीरांगना मैं जीवन के हर युद्ध से जीत जाऊंगी ।



Friday, May 23, 2025

बाबुल तुम बरगद की छांव हो

बाबुल तुम बरगद की छांव हो।
दुनिया की भरी दुपहरी में घावं हो 
बाबुल तुम बरगद की छांव हो 

कली बन खिली तुम्हारे आंगन 
तुम राजा नहीं पर हमें राजकुमारी सा रखा 
मुझे याद है तुम्हारा कहना मैं हूं न 
जा चला ले साइकिल मैं चल रहा तेरा साया बन तेरे साथ हूं l
पढ़ा लिखा इस जमाने में चलना सिखाया 
रूढ़िवादी विचारों से लड़ना सिखाया
मां ने तो पराया धन समझा पर तुम्हारा धन मैं थी
तुम सुनते समाज के ताने पर तुम्हारा आजाद मन मैं थी

रोटी मेरी गोल न थी पर तुम्हे खाना मेरे हाथ से भाया
मेरे अजीबो गरीब निर्णय समाज के दायरों से परे थे 
उन दायरों से पार नया संसार तुमने सजाया l

राजपूताना शान से मैने जब अंतर्जातीय विवाह का प्रस्ताव रखा , सबने रोका 
पर मेरा अंतर्मन पढ़ उसे सही तुमने ठहराया l

तेरी छांव से परे जब मैने नई दुनिया बनाई 
तेरी दुआओं ने रंग भर दिए , तेरे दरख़्त की छांव में जो बड़ी हुई जब चली अपनी डागरिया , तूने आत्मविश्वास की डोर से उसे सजाया थमा मुझे जब भी आंधी तूफान मेरे घर आया , तेरी आवाज गूंजती रही इन कानों में है मैं हूं न l

लगता है आज भी उसी ठंडक के साय में साथ हो 
बाबुल तुम बरगद की छांव हो


Thursday, May 15, 2025

थोड़ा सा रूमानी हो जाएं?"

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थोड़ा सा रूमानी हो जाएं (जीवनहीन जीने के लिए)

उम्र सुनो जरा 
थोड़ा सा रूमानी हो जाएं।
जीवन हैं चार दिन , तो क्यों न 
जिए जीभर के।
हां जी, तो यह है प्रेम लीला—
दशक 80-90 का दौर, एक मध्यमवर्गीय दंपति की कहानी।

पहला दृश्य: श्रीधर और गृह मंत्रालय

श्रीधर बेचारे, प्रेम और सौहार्द के मारे,
विवाह उपरांत, गृह-न्यायालय में हाजिर हुए।
उम्र बसंती,
जिम्मेदारियों की तेल में
दीपक की बाती-सी जल गई।
जब उमड़ा प्रेम का ज्वार, तो बोले श्रीधर—
"अरे सुनती हो, थोड़ा सा रूमानी हो जाएं?"

गृह मंत्रालय से धीमा उत्तर आया—
"क्या जी, बयौरा गये हैं?
मुन्नू-चुन्नू बड़े हो रहे हैं,
और आपको रोमांस चढ़ा है!
धर्मेंद्र जी बने फिरते हो क्या?
चलो, हाट-बाजार चलते हैं,
आज इतवार है, कुछ सस्ती सब्जी ही ले आएं।"

श्रीधर बाबू का चेहरा बुझी लालटेन-सा धूमिल हुआ।
मन ही मन बोले—
"हाय मुहब्बत जिंदाबाद!
क्यों श्रीमती, प्रेम को यूं त्याग रही हो?
देखो तो, प्रेम लीला हमारे जीवन के चौराहे पर
कटोरा लिए खड़ी है।"

"इक आना, दो आना दे दो प्रिय,
सुनो न, रात को ही सही,
अरे भाग्यवान, ये जीवन हैं 
जियो आज और आज ही 
थोड़ा सा रूमानी हो जाएं?"


दूसरा दृश्य: दिनेश बाबू और उनकी प्रेम-सुहासिनी

यह हैं दिनेश बाबू—
ज्ञान के पुजारी, पेशे से डॉक्टर,
उपाधियों की लंबी हैं सूची l
पर उनकी श्रीमती— बड़ी लचीली,
रति-रंग प्रेम-सुहासिनी!
उम्र चालीस में भी छोकरों का दिल धड़काती।

सप्ताहांत की शाम थी,
दिनेश बाबू पढ़ाई में मगन थे।
पत्नी ने छेड़ा—
"प्रिय, आज कैंडल-लाइट डिनर करें?"

ज्ञान के क्रांतिकारी सिपाही मुस्कुराए—
"अरे, मोमबत्तियों में भोजन खाने का क्या तुक?
आओ, तुम्हें रोमांटिक गाना सुनाता हूँ!"

सुर साधे, स्वर छेड़ा—
"इक तेरा साथ हमको दो जहां से प्यारा है..."

पत्नी दस कदम दूर बैठी,
पलकों से भावनाएँ छलकीं,
मगर आधी रात होते ही बोली—
"वाह! बहुत अच्छा गाया,
पर अब नींद से भारी हो रही हैं पलकें।
चलो, सोने चलती हूँ।
तुम भी अपना करवा समेटो,
रात आधी हो चली है।"

फिर भी मन में हलचल थी,
तो बोली धीरे से—
"दिनेश, यार, कभी-कभी ही सही,
लेकिन जिए जरा दिल से 
थोड़ा सा रूमानी हो जाएं!"

उफ्फ... मुहब्बत जिंदाबाद!

पुराने दिनों का प्रेम

प्रेम के जमाने वो भी थे—
संयुक्त परिवार की दुनिया में,
माँ खुद बहाने से छत पर भेजती थी—
"जाओ, आज छत पर ही सो जाना,
घर में मेहमान आए हैं।"
हाय मुहब्बत ज़िंदाबाद l
और महानगरों में भी प्रेम अंकुरित था—
दिनभर की भागदौड़ के बाद,
रात ही थी, ताक-झाँक के लिए।
पर जैसे ही रात के बारह बजे,
नगर निगम का आतंक जागता—
"उठो, उठो! नल में पानी आ गया!"

हाय, मुहब्बत जिंदाबाद!
अब ऐसे में भी प्रेम जी रहा था।
पत्नी बाल्टी भरती, और मैं...
बस उसे निहारता ही रह जाता।

लेकिन फिर एक दिन,
धीरे से मुस्काई वो और बोली—
"सुनो, कल घर में कोई नहीं होगा,
तो थोड़ा सा रूमानी हो जाएं!"

आधुनिक प्रेम: उलझन और प्रश्न

छोड़ो इन अधूरी बातों को,
अब करते हैं आज की बात।
प्रेम तो आज भी भारी है,
पर मुश्किलें भी कुछ कम नहीं।

पहले फुर्सत नहीं थी, अब संस्कारों में झिझक है।
फिर भी प्रेम सौहार्द में ब्रेकअप-सॉन्ग नहीं बजा था,
ना ही "अपना वाला छोड़, कोई और भाया" था।
मगर आज...?
बीसवीं सदी का प्रेम इतना बेबस क्यों है?
यह मेरा-तेरा, काम में बदलता क्यों जा रहा है?
संस्कार अब कटाक्षों में सिमट रहे हैं,
पहले उसकी खुशी में दिल धड़कता था,
आज उसकी खुशी से शिकायत क्यों है?

प्रेम की परिभाषा

प्रेम अब इतना कंजूस क्यों है?
सुहागन दिखना पहले सौभाग्य था,
अब सिंदूर न लगाना फैशन हो गया है।
पर प्रेम केवल आकर्षण नहीं,
यह सौभाग्य और समर्पण का संगम है।

सच्ची लगन से प्रेम करो,
तो तुमसे बड़ा कोई अंबानी नहीं।
जो इंतजार और धैर्य से प्रेम तक पहुँचते हैं,
उन्हीं को अपनी प्रेमिका में
इंद्र की अप्सराएँ नजर आती हैं।

बाकी जीवन में,
मध्यमवर्गीय दंपति का प्रेम-सौहार्द रहेगा।
जीवन हैं आज कल नहीं होगा 
हर काम करो ,जीने के लिए 
चिंता त्याग कर ,जियो जीभर के 
पल में जैसे सदियों जी लिए 
कुछ हैं कुछ होगा 
जो न हुआ तो कुछ और होगा 
तो 
"थोड़ा सा रूमानी हो जाएं?"




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