Friday, June 20, 2025

हो रही बंजर क्यों

 
हो रही बंजर क्यों 
 
ये मेरा अतः  मन भावभर हैं 
 
या की दुविधा वाटिका की प्रवाह 
 
कोई वास्तविकता किरण भी हैं 
 
या हैं मन टाँगें का लचकता पहिया 
 
रोकती रहती हूँ जिसे मैं ,
 
वो बन  विचार वाहनी 
 
अकुला रही मुझे बार बार हैं 
 
मैं अवलोकन करती नैनों से
 
पूछती  हूँ नीलगगन से 
 
रिश्तों की धरती -हो रही बंजर क्यों ?
 हो रही बंजर क्यों?
 
जो हैं सब  अपने 
 
तो रिश्तों का मन विरान  क्यों 
 
आह निकलने से पहलें ,
 
होता नही इलाज क्यों ?
 
जाने ये कौन सी पुरवा ब्यार  
 
उड़ाती ले जा रही हैं 
 
रंगोलीयों का कारवाँ 
 
कोई छावनी भी नही 
 
कलमुई इस ब्यार  का । 
 
जब रंगरेज़ के ही घर में 
 
रंगों का सुखाड़ हैं 
 
तो रुदन ही करती 
 
उड़ जाएगी रिश्तों की 
 
अध् पकी बाजड़े की गढ़रिया
 
इस मन से उस मन का हाल 
 
अब  कबूतर भी नही  बाँचते 
 
ऐसे में क्या  पुछू  
 
जो न पूछूँ तो निशा  बोझिल  हो जायें 
 
चल प्रारब्ध न सही 
 
छितिज से ही बतां --
 
रिश्तों की धरती -हो रही ,बंजर क्यों ?
   हो रही बंजर क्यों?
 
  हर इक इन्सान बस भटका रहा हैं 
 
 खुशियों को खुशियों की राह से 
 
कभी बडपन दिखा कर 
 
तो कभी संस्कार  की बेड़ लगाकर 
 
जाने कब तक 
 
जलती रहेगी रिश्तों की होलिका 
 
मर्यादा ,रिवाज़ तेरी गोद में 
 
क्या बोलेगा इक दिन 
 
" फिर से कागा"
 
रिश्तों वाली छत की मुंडेर से 
 
जब  जब होगा   प्रहार 
 
रिश्तों के आँगन में 
 
गूंजती रहेगी पायल 
 
सरगम भरे सवाल से 
 
रिश्तों की धरती -हो रही बंजर क्यों क्यों
 
हो रही   बंजर क्यों ??
 
   

 
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Thursday, June 19, 2025

ग़ज़ल -फिर वही बात दिल में , फिर वही शाम सिने में

                                    

फिर वही बात दिल में , फिर वही शाम सिने में  
ढल रहें हो तुम फिर आज बनके दिल में ज़ाम 
              फिर वही बात दिल में.…… 

जुस्तजू की दरम्यां में 

क्या कहें क्या छुपा हैं 

रा-जें जिंदगी हैं। … 
या तेरे होने का ऐतबार। । 
फिर वही बात दिल में , फिर वही शाम सिने में  


हरसू हैं तूँ  हर तरफ तूँ। .... 
हैं यें मेरी साँस। …… 
यां तेरे होने का  अहसास !!
फिर वही बात दिल में 


जाकती पलकों से 
बुन रहा हैं क्या मन 
हैं क़रीब ज़न्नत  
या सज रहा हैं फिर ख्वाब -गाह 
फिर वही बात दिल में


जीना हैं मुझको ज़ी भर के 
हाँ मगर शर्त ये 
ढलती रहें हर शाम
 संग तेरें रहनुमां 
फिर वही बात दिल में , फिर वही शाम सिने में  






Monday, June 2, 2025

गीत

तेरी मेरी प्रेम कहानी
एक सागर के दोनों किनारे 
हम दोनों हो दूर फिर भी,
मिलते हैं बाहों के  सिरहाने 
तेरी मेरी प्रेम कहानी 
एक सागर के दोनों किनारे ।


आंचल हमने फैलाया 
तुम वहीं आके हो मिलते 
चंद राहें और थोड़ी दूरी
हैं यही प्रेम समर्पण 
तेरी मेरी प्रेम कहानी 

एक सागर के दोनों किनारे ।