Friday, April 22, 2011

मन

मन जो कहता है ,कास की हम वही कर पाते ?
हम सोचते कुछ है और होता कुछ और है |
फिर भी क्यों हम मन के बारिश में भींगे जाते है ?
चल परते है उस रह पर जिसकी मंजिल का पता ...................
खुद मन भी नही जानती ............
एक धुन है मन और हमारे सोच की बीच .............
जाने क्यों हम इस मन के सागर का किनारा चाह कर भी,
अपनी पतवार से नही मिलाते..............
शायद एक सोच है की मन जो कहता है , वही सच है "
और इसी सोच के साथ हम कर्वी निमोली को,
अपनी कोशिसो के मिसरी में खुला कर
कभी तिनके पर कभी बूंदों पर बरसाते रहते है ............
मन तो मन है,
चंचल बनकर हमे
एक ड़ाल से दूसरी ड़ाल तक
बसंत के झूलो सा झूलता रहता है |

1 comment:

  1. मन तो मन है

    चंचल बनकर हमे
    एक ड़ाल से दूसरी ड़ाल तक
    बसंत के झूलो सा झूलता रहता है...



    हम बहुत हद तक यकीन के साथ कह सकते हैं कि आपके अंतर्मन में काफी शब्द है.....राहुल

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