इक धुंध सी हैं जिंदगी
थोड़ी खामोश थोड़ी गूम हैं जिंदगी
थोड़ी धुप भर तलाश हैं जिंदगी
छाँव की छाँव से डरती हैं जिंदगी
अब तो मेरे नाम से भी अजनबी हैं जिंदगी
गर साँस लेने को कहतें जिंदगी
तो नींद की तलाश में जाग रही हैं जिंदगी
मेरी तो हर पहर में चौराहें की बीच हैं जिंदगी
हिसाब में बड़ी पक्की हैं जिंदगी
सुबह हसाया तो रात भर रुलाती हैं जिंदगी
शक्ल हैं ऐसी बनाई
जैसे खानदानी कोई दुश्मनी हैं जिंदगी
देने की तो इक्गज्जि भी नियत नही हैं
बस मुझसे छिनकर जीती आयी हैं जिंदगी
बैरन हैं ऐसी सौतन बनी की
मेरी गलियों में भी
पत्थरों का ही मन हैं फेंकती
साँसों की सुनी छत और
आखों में सपनो का इंतजार लियें
देखें कब तक युही भटकती हैं जिंदगी
इक धुंध सी हैं जिंदगी
थोड़ी खामोश थोड़ी गूम हैं जिंदगी
खुद को देखने के वास्ते मुझको अदना तमाशा बनाती जिन्दगी... ओ जिन्दगी ....
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