Friday, February 15, 2013

इक धुंध सी हैं जिंदगी



इक धुंध सी हैं जिंदगी
थोड़ी खामोश थोड़ी गूम   हैं जिंदगी

थोड़ी  धुप भर तलाश हैं जिंदगी
छाँव  की छाँव  से डरती हैं जिंदगी

अब तो मेरे नाम से भी अजनबी हैं जिंदगी
गर साँस लेने को कहतें जिंदगी
तो नींद की तलाश में जाग  रही हैं जिंदगी

मेरी तो हर पहर में चौराहें  की बीच हैं  जिंदगी
   हिसाब में बड़ी पक्की हैं जिंदगी
सुबह हसाया तो  रात भर रुलाती हैं जिंदगी

शक्ल हैं ऐसी   बनाई
जैसे खानदानी कोई दुश्मनी हैं जिंदगी
देने की तो इक्गज्जि भी नियत नही हैं
बस मुझसे छिनकर जीती आयी    हैं जिंदगी

बैरन हैं ऐसी सौतन बनी की
मेरी गलियों में भी
 पत्थरों का ही मन हैं फेंकती

साँसों की सुनी छत और
 आखों में सपनो का   इंतजार लियें
देखें कब तक युही भटकती हैं जिंदगी
इक धुंध सी हैं जिंदगी
थोड़ी खामोश थोड़ी गूम   हैं जिंदगी

1 comment:

  1. खुद को देखने के वास्ते मुझको अदना तमाशा बनाती जिन्दगी... ओ जिन्दगी ....

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